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श्री-चक्रं शरणं व्रजामि सततं सर्वेष्ट-सिद्धि-प्रदम् ॥१॥

बिंदु त्रिकोणव सुकोण दशारयुग्म् मन्वस्त्रनागदल संयुत षोडशारम्।

सानन्दं ध्यानयोगाद्विसगुणसद्दशी दृश्यते चित्तमध्ये ।

The underground cavern provides a dome large previously mentioned, and barely visible. Voices echo superbly off The traditional stone in the walls. Devi sits within a pool of holy spring drinking water which has a Cover over the top. A pujari guides devotees by way of the whole process of paying out homage and obtaining darshan at this most sacred of tantric peethams.

केवल आप ही वह महाज्ञानी हैं जो इस सम्बन्ध में मुझे पूर्ण ज्ञान दे सकते है।’ षोडशी महाविद्या

शैलाधिराजतनयां शङ्करप्रियवल्लभाम् ।

She is a component from the Tridevi plus the Mahavidyas, symbolizing a spectrum of divine femininity and get more info affiliated with both equally delicate and fierce facets.

लक्ष्या मूलत्रिकोणे गुरुवरकरुणालेशतः कामपीठे

हस्ते चिन्मुद्रिकाढ्या हतबहुदनुजा हस्तिकृत्तिप्रिया मे

हस्ते पाश-गदादि-शस्त्र-निचयं दीप्तं वहन्तीभिः

हंसोऽहंमन्त्रराज्ञी हरिहयवरदा हादिमन्त्रार्थरूपा ।

केयं कस्मात्क्व केनेति सरूपारूपभावनाम् ॥९॥

इसके अलावा त्रिपुरसुंदरी देवी अपने नाना रूपों में भारत के विभिन्न प्रान्तों में पूजी जाती हैं। वाराणसी में राज-राजेश्वरी मंदिर विद्यमान हैं, जहाँ देवी राज राजेश्वरी(तीनों लोकों की रानी) के रूप में पूजी जाती हैं। कामाक्षी स्वरूप में देवी तमिलनाडु के कांचीपुरम में पूजी जाती हैं। मीनाक्षी स्वरूप में देवी का विशाल भव्य मंदिर तमिलनाडु के मदुरै में हैं। बंगाल के हुगली जिले में बाँसबेरिया नामक स्थान में देवी हंशेश्वरी षोडशी (षोडशी महाविद्या) नाम से पूजित हैं।

श्री-चक्रं शरणं व्रजामि सततं सर्वेष्ट-सिद्धि-प्रदम् ॥१०॥

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